मनुष्य के विचार हमेशा उसी तरफ चलते है जिस प्रकार का वातावरण वह अपने चारो ओर देखता है जिस प्रकार से उसकी परवरिश हुई है।
जो भी संस्कार उसने अपने माता पिता से ग्रहण किये है। या अपने प्रिय जनों से सीखे है। मनुष्य के विचार उसी दिशा में अग्रसर होते है। एक रुग्ण
विचार जो पुरे संसार के बच्चों में डाला जाता है। जिससे तुम भी अछूते नहीं रहे हो वह एक विचार जिसने सम्पूर्ण मानव जाती को रस हीन बना दिया
है। बच्चों से उनका बचपन छीन लिया तथा शिक्षा को पहाड़ जैसा बना दिया तथा समाज में नफरत का जहर घोल दिया। यह विचार जिसका नाम
है। श्रेष्टता का विचार ! इस एक विचार ने मानव जाती का जितना विनाश किया है उतना तो परमाणु बम भी नहीं कर सकता। श्रेष्टता के विचार
से ही जाती व्यवस्था का आरम्भ हुआ। श्रेष्टता के विचार ही वर्ण व्यवस्था का निर्माण हुआ। श्रेष्टता के विचार से ही मानव जाती में ऊच नीच का
कारन है। आप देखेंगे की इस संसार में ऐसे कितने विद्यार्थी है जिन्होंने आत्म हत्या की जिसका कारन उनके परीक्षा में दूसरे विद्यार्थी की तुलना में
कम अंक प्राप्त करना था। आत्म हत्या इसलिए नहीं की उन्होंने परीक्षा में कम अंक प्राप्त किये उन्होंने आत्म हत्या इसलिए की क्युकी वह अपनी
श्रेष्टता सिद्ध नहीं कर सके अगर उसी समय पूरी कक्षा के विधार्थी या पुरे स्कूल के विधार्थीओ के कम अंक आये होते तो वह विधार्थी आत्महत्या
न करता क्युकी अब दूसरे विद्यार्थीओ से तुलना करने पर वह अपने आप को उनके समान अनुभव करता है। जहा कोई अपनी श्रेष्ठता सिद्ध
न कर स्का और वह स्वयं को उनके समान ही समझता है अब यहाँ समझने की बात यह है की अंक वहीं है स्वयं की परिस्थिति भी पहले
जैसे ही है परन्तु अब उस विद्यार्थी ने स्वयं की तुलना दूसरे विद्यार्थियों से की तो वह दूसरे विद्यार्थियों के समान ही निकला अब उसकी श्रेष्टता
पर कोई सवाल नहीं उठाएगा क्युकी यह सभी विधार्थी एक समान है। यहाँ कोई अपने को श्रेष्ट सिद्ध न कर स्का। यहाँ तुलना की तो उस विद्यार्थी
ने स्वयं को एक समान ही पाया। विधार्थियो का लक्ष्य अच्छे अंक प्राप्त करने का तो होता ही है परन्तु उससे ज्यादा अपनी श्रेष्टता को सिद्ध करने
के विचार पर ज्यादा होता है। और यह विचार उन्हें उनके बड़ो-बुजर्गो से मिलता है और यह श्रेष्टता का विचार ऐसे ही चलता आ रहा है। किसी
को नहीं पता की श्रेष्टता सिद्ध क्यों करनी है। परमात्मा ने सबको एक समान बनाया है।
परन्तु ऊच नीच का भेद मनुष्यो ने स्वयं बनाया है।
जाती व्यवस्था – इसी प्रकार जाती व्यवस्था का निर्माण हुआ। कुछ मनुष्यो के समूह ने जो समर्थवान थे स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध किया तथा अपनी
श्रेष्टता को सिद्ध करने के लिए दूसरे लोगो को नीचता (शूद्र) का दर्जा दिया उनसे उनके सारे हक़ छीन लिए गए। उनसे गुलामो जैसा व्यव्हार
किया उन्हें पशु समान बना दिया गया। तथा वह आगे न बढ़ जाए इसलिए उनसे शिक्षा का अधिकार भी छीन लिया। वह उनसे ज्यादा अमीर
न बन जाये इसलिए उन्हें धन संचित करने के अधिकार से भी वंचित रखा गया। इसका मूल कारन बस अपनी श्रेष्टता को सिद्ध करने से ही था।
धर्म की श्रेष्टता – इस संसार में 4000 से ज्यादा धर्म है ।और सभी धर्म अपनी श्रेष्टता को सिद्ध करने में लगे हुए है। इसके लिए कई धर्मो ने
नरसंघार भी किया है। कितने ही निरपराध लोगो की निर्मम हत्या की है। सिर्फ इसलिए की वह दुसरो धर्म को निचा दिखा
सके और स्वयं के धर्म की श्रेष्टता सिद्ध कर सके। धर्म के ठेकेदारों ने लोगो में यह बीज डाला की इंसानियत से बड़ा उनका
धर्म है लेकिन में तुमसे कहता हु की इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है। यदि कोई भी तुम्हे धर्म के नाम पर हत्या करने
पर बोले तो उस धर्म को तुरंत ही त्याग दो। आप देखोगे की धर्म के नाम पर कितने दंगे हुए है कितने मासूम इसकी बलि
चढ़ गए। बस एक विचार के कारन की हमारा धर्म तुम्हारे धर्म से श्रेष्ठ है। इसी को साबित करने के लिए लोग एक दूसरे की हत्या
करते हुआ आ रहे है।
इसलिए मैं तुमसे कहता हु की इस विचार को अपने जीवन में से निकाल फेको अन्यथा यह विचार तुम्हारे सम्पूर्ण जीवन को नष्ट कर देगा।
जैसे ही तुम इस विचार को अपने जीवन में से निकाल फेंकोगे तुम पाओगे की तुम्हारा जीवन आनंद से भर गया है। अब तुम्हारे भीतर
आनंद के झरने फूटने लगे है। अब तुम भाग दौड़ के चक्र्व्यू से भाहर निकल गए हो अब तुम स्वयं को अपनी नजरो से देख पाओगे
दुसरो की नजरे क्या कहती है तुम्हे इससे रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ेगा। यही से तुम्हे जीवन में जागरूकता का बोध होने लगेगा।
यही रास्ता निर्वाण मोक्ष का रास्ता है।